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जीवन योजना बद्ध नहीं है। और यही एक मात्र ढंग है, जीवंत होने का।
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संपूर्ण अनियोजित, भविष्य के संबंध में बिलकुल अनभिज्ञ–यहां तक कि अगले क्षण के संबंध में भी।
आज पर्याप्त है–वास्तव में आवश्यकता से अधिक पर्याप्त । जो क्षण वर्तमान है वही केवल जीवंत क्षण है–अतीत मृत है इस अर्थ में कि वह अब नहीं है और भविष्य भी मृत है इस अर्थ में कि वह अभी जन्मा ही नहीं है।
और इस तरह अतीत से संबंधित होना, मृत होना है और भविष्य से संबंधित होना भी, मृत होना ही है।
यहीं और अभी, जीवंत हॊने का एक मात्र उपाय– क्षण में होना, पूर्णरूपेण उसमें ही होना।
क्षण-क्षण जीते हुए उस परम सुख को पाया जा सकता है जो कि इस जगत का बिल्कुल भी नहीं है।
एक क्षण समग्रता से जीना ही समय का अतिक्रमण कर जाना है।
और दो क्षणों के बीच बन जाता है एक अंतराल।
और यदि कोई इस अंतराल में ठहर सके तो वह मृत्यु के पार हो जाता है।
क्योंकि समय ही मृत्यु है और समय शून्यता ही जीवन है।
जीवन में ठहरा हुआ कुछ भी नहीं है–वह तो जीवंत है–एक प्रक्रिया–नदी की भांति–सदैव अज्ञात की ओर बहती हुई–ज्ञात तटों से अज्ञात तटों की ओर।
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